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सेना को आधुनिकीकरण की जरूरत, बजट नाकाफी

नई दिल्ली 15 लाख से ज्यादा सैन्य शक्ति वाली के आधुनिकीकरण के लिए बजट क्या लेकर आया, इसपर नजर डालें तो कुछ खास नजर नहीं आता। फरवरी में पेश किए गए अंतरिम बजट की तरह ही इसमें सुरक्षा बजट के लिए 3.18 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो पिछले वित्तीय वर्ष से 6.87 प्रतिशत ज्यादा है। इस तरह यह बढ़त केवल मुद्रास्फीति के आधार पर की गई है। वेतन और पेंशन बिल में बदलाव के बाद देश की सेना के आधुनिकीकरण जैसी जरूरतों के चलते जहां सैन्य शक्ति व संसाधनों की जरूरत बढ़ी है, वहीं बजट इस दिशा में कमजोर नजर आता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से पेश के किए गए बजट में आवंटित 3.18 लाख करोड़ रुपये 2019-2020 के संभावित जीडीपी का केवल 1.5 प्रतिशत हैं, जो 1962 में चीन से युद्ध के दौरान के बाद सबसे कम आंकड़ा है। इसके अलावा 1.12 लाख करोड़ रुपये अलग से सेना और इससे जुड़े असैन्य कर्मचारियों के सुरक्षा पेंशन के लिए आवंटित किए गए हैं। सेना के रणनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि चीन और पाकिस्तान के साथ हर तरह के हालात के लिए तैयार रहने और मजबूत ढांचे के लिए सेना को कम से कम जीडीपी का 2.5 प्रतिशत हिस्सा मिलना चाहिए। इसके बावजूद में कटौती की वजह समझ से परे है और ऐसा नहीं होना चाहिए। पढ़ें: विदेशी हथियारों पर नहीं देनी होगी कस्टम ड्यूटी निर्मला सीतारमण ने सैन्य शक्ति का जिक्र बजट में करते हुए यह जरूर कहा कि सेना को आधुनिकीकरण और बेहतर किए जाने की जरूरत है। उन्होंने बजट पेश करने के दौरान कहा, 'सेना का आधुनिकीकरण और अपग्रेडेशन तुरंत किए जाने की जरूरत है। यह राष्ट्रीय प्राथमिकता है। इसके लिए भारत के बाहर से मंगाए जाने वाले सुरक्षा उपकरणों को बेसिक कस्टम ड्यूटी से मुक्त किया जा रहा है।' भारतीय सेनाएं 2016 से यह कस्टम ड्यूटी दे रही थीं, जिसमें राहत दी गई है लेकिन इतना काफी नहीं है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने यह जरूर कहा कि कस्टम ड्यूटी न पड़ने से सुरक्षा बजट में अगले पांच साल में करीब 25,000 करोड़ रुपये की बचत हो सकेगी। मौजूदा डील्स पर खर्च के चलते नहीं होगी बचत नए हथियार सिस्टम और पूरी सुरक्षा व्यवस्था के आधुनिकीकरण के लिए हालांकि 3.18 लाख करोड़ रुपये के इस साल के बजट में से 1,08,249 करोड़ रुपये की आवंटित हुए हैं। यह रोजाना के खर्च और वेतन के लिए दिए गए 2,10,682 करोड़ के मुकाबले कम है। पहले ही कम बजट का एक हिस्सा इस साल की शुरुआत में हुईं सैन्य डील्स या हथियारों की खरीद में खर्च होने के चलते नए प्रॉजेक्ट्स के लिए सेना के पास इसका बहुत कम हिस्सा बचेगा। एक आधिकारिक बयान के मुताबिक, '2.28 लाख करोड़ रुपये का सैन्य बजट केंद्र सरकार के खर्च का करीब 32 प्रतिशत है।' सेनाओं को बेहतर सुविधाओं और ज्यादा सैन्यबल के अलावा हेलिकॉप्टर, पनडुब्बियों, मिसाइल जैसी जरूरतों के लिए इससे ज्यादा की जरूरत है। पढ़ें: कैसे पूरी होगी आधुनिक उपकरणों की जरूरत? सेना को रात में लड़ने की क्षमता वाले और लैंडमाइन का पता लगाने जैसे कामों के लिए आधुनिक उपकरण चाहिए। देश में स्वास्थ्य, शिक्षा या ऐसी जरूरतों के चलते सेना के पास आया बजट इसके लिए नाकाफी है। हालांकि, नई मोदी सरकार के पास मौजूदा सुरक्षा व्यवस्था में बदलाव और सुधार करने का एकमात्र विकल्प है। इसके लिए मौजूदा सरकार के पास सशस्त्र बलों को एकीकृत करने और एक ट्राइ-सर्विस चीफ का पद तैयार करने के अलावा मौजूदा वक्त में बंद पड़े ऑपरेशंस को दिशा देने का विकल्प भी है। सरकार उन ऑपरेशंस को फिलहाल रोक सकती है, जिनके रिजल्ट्स के मुकाबले उनपर ज्यादा खर्च आ रहा है। साथ ही हथियारों को देश में ही तैयार करने के उपक्रम तैयार करने का विकल्प भी हमेशा खुला है। मौजूदा हालात में अप-टू-डेट है सुरक्षा व्यवस्था माना यह भी जा रहा है कि किसी जरूरी ऑपरेशन या आपात स्थिति में सरकार बाकी खर्चों पर कटौती करने के साथ ही बजट बढ़ा भी सकती है। सेना के पास मौजूदा हालात को देखते हुए पर्याप्त बल व हथियार मौजूद हैं और केवल उन्हें आधुनिक किए जाने की जरूरत है। इसके अलावा जल, थल व नभ सेना में हर तरह के हालात का सामना करने के लिए प्रशिक्षित बल के अलावा लड़ाकू विमान, युद्धपोत और पनडुब्बियां भी तैयार हैं। सेना के मौजूदा खर्च का बड़ा हिस्सा उन क्षेत्रों में जा रहा है, जो पहले से तैयार किए जा चुके हैं और नवाचार के लिए इसे नई दिशा में लेकर जाने की जरूरत है। सैन्य शक्ति के साथ ही भारत के कूटनीतिक रिश्ते भी पड़ोसी हलचल के लिहाज से फिलहाल स्थिरता ही दर्शाते हैं।


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