बॉक्स ऑफिस पर 278.24 करोड़ रुपये की भारी-भरकम कमाई करने वाली फिल्म '' ऐक्टर के करियर की सबसे कामयाब फिल्म है। हालांकि, 'कबीर सिंह' जैसे वॉयलेंट और महिलाओं के साथ बुरा बर्ताव करने वाले किरदार के लिए फिल्म की आलोचना भी खूब हुई। कई क्रिटिक्स ने इसे प्रॉब्लमैटिक फिल्म तक करार दिया, लेकिन शाहिद के मुताबिक, जिस तरह से इस फिल्म को अटैक किया गया, वह सही नहीं था। फिल्में सिर्फ अच्छे लोगों पर नहीं बनतींफिल्म की आलोचना पर शाहिद कहते हैं, 'हम लोकतंत्र में रहते हैं और अभिव्यक्ति की आजादी हम सबका अधिकार है। वैसे, ऑडियंस ने नहीं, कुछ रिव्यूवर्स ने आलोचना की, क्योंकि ऑडियंस का नजरिया ऐसा होता, तो फिल्म इतना बिजनस नहीं कर पाती। यह इस साल की सबसे ज्यादा पसंद की गई फिल्म है। इसलिए, यह कहना गलत है कि ऐसी फिल्म कैसे बन सकती है या अगर आप ये फिल्म पसंद करते हैं, तो आपका नजरिया सही नहीं है। यह बहुत गलत है और रिव्यूज में ये थोड़ा हुआ। क्या आप यह कहना चाहते हैं कि ऑडियंस समझदार नहीं है? उन्हें अपनी सोच से फिल्म देखने का हक नहीं है? फिल्म एक फ्लॉड (खामी वाले) इंसान के बारे में थी। अगर उसकी गलतियां दिखाएंगे नहीं, तो उसका ट्रांसफॉर्मेशन, उसकी जर्नी कैसे दिखाएंगे? फिर तो, हमें फिल्में बनानी ही बंद कर देनी चाहिए। फिल्में केवल महान इंसान के बारे में तो नहीं बनाई जा सकतीं। उसमें सच्चाई को दर्शाना पड़ता है। आपको सही लगे या गलत लगे, वह आपका नजरिया है। 'देवदास' में एक सीन है, जहां देवदास एक छड़ी से लड़की को मुंह पर मारते हैं और वह दाग उसके मुंह पर जिंदगीभर रहता है, तो ऐसे कॉम्प्लेक्स कैरेक्टर तो हम 60 के दशक से दिखा रहे हैं। हमने यह भी दिखाया कि उस किरदार का कितना बुरा हाल होता है, क्योंकि उसकी कुछ गलत आदतें थीं। कबीर भी ऐसा ही है। उसमें कुछ ऐसी चीजें हैं, जो सही नहीं हैं, लेकिन हम कब से ऐसे हो गए, जो केवल अच्छे लोगों के बारे में फिल्में बनाने लगे। यह मेरे हिसाब से सिनेमा को मारना है। आप अपनी नैतिकता किरदार की नैतिकता पर मत थोपें। वरना, फिर तो हम ऐक्टिंग ही नहीं कर सकते, फिल्ममेकर्स फिल्में ही नहीं बना सकते।' औरतों से नहीं, सबसे बदतमीजी करता है कबीर सिंहकबीर सिंह पर एंटी-वुमन होने के भी काफी आरोप लगे। इस पर शाहिद का कहना है, 'कबीर का प्रॉब्लम सबके साथ है। ऐसा नहीं है कि वह सिर्फ औरतों से बद्तमीजी करता है। वह सबके साथ बद्तमीजी करता है। इसलिए यह कहना कि वह केवल औरतों के साथ गलत है, यह मुझे थोड़ा प्रोपेगैंडा लगा। मुझे इससे थोड़ी हैरानी हुई, क्योंकि फिल्म करते हुए मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि वह सिर्फ औरतों के साथ बदतमीजी कर रहा है। मुझे लगा कि यह बहुत बदतमीज करैक्टर है। हमने कहीं नहीं कहा कि यह परफेक्ट किरदार है। हम तो शुरू से कह रहे हैं कि इसमें काफी खामियां हैं। मुझे तो खुद कबीर से कई बार इरीटेशन होता था, कई सीन्स में मैं खुद उसे पसंद नहीं करता था और चाहता था कि ऑडियंस को भी वही महसूस हो, लेकिन फिल्म कबीर के डाउनफॉल के बारे में है और अगर आपको किसी का डाउनफॉल दिखाना है, तो वह चीजें भी तो दिखानी होंगी, जो उसकी वजह बनती हैं।' प्यार में हिंसा नहीं होनी चाहिए, पर होती तो है नफिल्म में कबीर के प्रीति को थप्पड़ मारने और उसे अपनी बंदी घोषित कर देने जैसी चीजों पर भी खूब सवाल उठे, जिस पर शाहिद कहते हैं, 'कोई भी रिलेशनशिप ऐसी नहीं है, जिसमें कोई गलत चीज न हो। जो दो लोगों के बीच में होता है, वह उन दो लोगों के बीच की बात होती है। वह पर्सनल स्पेस है, अगर आप उसे फिक्शन में भी नहीं दिखा सकतें, तो मुझे यह फनी लगता है, क्योंकि जब हम 'गेम ऑफ थ्रोन्स' देखते हैं, जहां पर लोग गले काट रहे हैं या जब 'गॉड फादर' में रॉबर्ट डी नीरो को आदमी को टुकड़ों में बांटते देखते हैं, तब कहते हैं कि कितने रिस्क लेने वाले ऐक्टर्स हैं, जो ग्रे शेड के करैक्टर करते हैं, लेकिन यहां पर आते ही आपके डबल स्टैंडर्ड हो जाते हैं। ऐक्टर को हर तरह के किरदार करने की आजादी होनी चाहिए। अगर कबीर ने लड़की को थप्पड़ नहीं मारा होता, तो उसकी नेगेटिविटी पूरी तरह बाहर आती नहीं।' फिल्म के निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर रिश्ते में थप्पड़ मारने की आजादी न हो, तो वह सच्चा प्यार नहीं। उनके इस बयान पर शाहिद कहते हैं, 'उसके बाद उन्होंने दूसरे इंटरव्यू में खुद ही सफाई भी दी, लेकिन फिल्म को बहुत अटैक किया गया था और शायद वह भी उससे दंग थे कि ऐसा क्यों हो रहा है। 'कबीर सिंह' के लिए अवॉर्ड मायने रखता हैफिल्म में शाहिद की परफॉर्मेंस अवॉर्ड विनिंग भी मानी जा रही है। अवॉर्ड उनके लिए कितना मायने रखते हैं, इस पर वह कहते हैं, 'अफकोर्स बहुत अच्छा लगता है, जब आपको सराहा जाता है, लेकिन मेरे लिए इस साल अवॉर्ड इसलिए इंपॉर्टेंट हैं, क्योंकि सिनेमा वक्त के साथ मैच्योर हो रहा है। पहले एक प्रॉब्लम रही है कि कई बार बहुत अच्छी फिल्में पैसे नहीं कमा पातीं, जबकि फॉर्म्यूला फिल्म हिट हो जाती थीं, लेकिन अब कॉन्टेंट और कैरेक्टर बेस्ड फिल्में ज्यादा काम कर रही हैं और उन्हें कमर्शल सक्सेस भी मिल रही है। मुझे लगता है कि 'कबीर सिंह' भी उसी कैटिगरी में आती है। इससे पता चलता है कि सिनेमा बदल रह है। अब वह जमाना गया, जब आपको सिर्फ अच्छा बनकर गाने गाकर लोगों को खुश करना है। लोग थक चुके हैं उससे। अब वे असलियत देखना चाहते हैं। यह बहुत पॉजिटिव और बड़ी चीज है, पूरी इंडस्ट्री के लिए। इसलिए, अगर इसे सराहा जाएगा, तो लगेगा कि सिनेमा वाकई वक्त के साथ बदल रहा है।'
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